'जहाँ चाह, वहाँ राह इस कहावत को चरितार्थ करती ग्रामीण महिलाएं,करोड़ों स्त्रियों की प्रेरणा बनी ये महिलाएं

'जहाँ चाह, वहाँ राह इस कहावत को चरितार्थ करती ग्रामीण महिलाएं,करोड़ों स्त्रियों की प्रेरणा बनी ये महिलाएं

जौनपुर । सहज, सरल, भोला अंदाज, लेकिन भीतर कुछ कर गुजरने का जज्बा बार-बार उभर आता है उनके चेहरे पर। वे जानती हैं कि उनके दम पर ही उनका संसार है। इसलिए खुशी-खुशी हर दर्द सहती हैं और संघर्ष को बना रही हैं अपना हथियार।

ये ग्रामीण महिलाएं अपनी नेतृत्व क्षमता और आत्मशक्ति की बदौलत बदल रही हैं गांवों की सूरत। स्वयं सहायता समूह के जरिए अपना व्यवसाय करने वाली ये महिलाएं आज करोड़ों स्त्रियों की प्रेरणा बन गई हैं।

बरसठी, जौनपुर (उ.प्र.) की राधिका पटेल ऐसी ही एक महिला हैं। वर्ष 2019 में जब गंगा मैया सक्षम स्वयं सहायता समूह का निर्माण किया तो इसकी कल्पना वह खुद नहीं कर सकती थीं। वह कहती हैं, नौवीं कक्षा में थी तभी शादी हो गई और इंटर में थी तब पहला बच्चा हुआ। घर की जिम्मेदारी और अपना काम करते हुए मैंने बीए किया और आज हमारा बड़ा परिवार है।

अपने परिवार में वह अपने साथ आईं उन महिलाओं को भी जोड़ती हैं जिन्हें उन्होंने न केवल साक्षर किया, बल्कि अपने दम पर रोजगार निर्माण का हौसला दिया। हालांकि इससे पहले उन्होंने खुद को मजबूती से आगे बढ़ाया और यही वह चीज है, जो उनके साथ हर महिला को जुडऩे की प्रेरणा देती है। शादी होने के बाद तीन साल मायके में रहीं। वह काम करना चाहती थीं और अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थीं। इसलिए तमाम बाधाओं के बीच पढ़ाई जारी रखी। आखिरकार काम मिला, स्वयं सहायता समूह में काम करने वाली महिलाओं की निगरानी करने का। 10 गांवों में उनकी ड्यूटी लगाई गई और तनख्वाह थी मात्र ढाई हजार रुपये। उनकी लगन और मेहनत को देखकर गांवों की संख्या घटाकर पांच की गई और तनख्वाह भी बढ़कर चार हजार हो गई।

स्वयं पर हो पूरा विश्वास: महिलाओं के बीच जागरूकता अभियान और साक्षर करने का उनका उत्साह देखकर उन्हें प्रोजेक्ट साक्षर अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस पर राधिका लैपटाप लेकर महिलाओं को अलग-अलग समूहों में पढ़ाने लगीं। तनख्वाह भी चार से आठ हजार रुपये हो गई, पर यह सब करना आसान नहीं था। परिवार को इसके लिए तैयार करना पड़ा। पति चाहते थे कि पत्नी को लेकर दिल्ली चले जाएं, पर राधिका ने सबको मना लिया।

आत्मशक्ति की रोशनी ने राधिका के पथ को उजियारा करना शुरू किया तो पति भी कदम से कदम मिलाने लगे। राधिका कगती हैं, पति का साथ तो मिला, लेकिन समाज में महिलाओं के प्रति जो कुंठित सोच और रूढिय़ां हैं, मेरी राह में रोड़ा बनकर खड़ी हो गईं। मैैं लोगों की फब्तियों से परेशान होकर या हताश होकर रो देती थी, लेकिन पति ने यह कहकर हौसला दिया कि कोई कुछ भी कहे, मैं तो साथ हूं।

महिलाओं को साक्षर करने का प्रोजेक्ट बंद होने के बाद राधिका दूसरी ग्रामीण महिलाओं के साथ कुछ काम शुरू करना चाहती थीं। अत: सबकी सहमति से उन्होंने अपनी जमीन में कुछ फल-सब्जियां उगाने और बेचने का काम शुरू किया। आगे चलकर ये महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से प्रशिक्षण और सहयोग पाकर आगे बढ़ीं। पहले उन्हें सिलाई-कढ़ाई का काम मिला। अगस्त 2021 में राधिका ने सामूहिक प्रयास से चप्पल बनाने की छोटी इकाई स्थापित की। सफलता मिली तो बरसठी ब्लाक के ही जरौटा व बभनरी गांव में दो मिनी फैक्ट्री लगाकर प्रतिदिन 400-450 हवाई चप्पलें तैयार करने लगीं। यहां काम करने वाली महिलाएं निर्माता के साथ-साथ विक्रेता की भूमिका भी निभाती हैं। इन चप्पलों को पैक करके 40 से 50 रुपये में आसपास के बाजारों में बेचती हैं। इससे एक दिन में अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है, जिससे समूह की महिलाओं की गृहस्थी की गाड़ी सरपट दौडऩे लगी है।

उन महिलाओं से राधिका क्या कहना चाहेंगी, जो अपना काम शुरू करना चाहती हैं, लेकिन उनके मन में संकोच है? राधिका जोशीले अंदाज में कहती हैैं कि मैं अपने अनुभव से इतना ही कहूंगी कि यदि आप कुछ करना चाहती हैं तो केवल अपने काम पर ध्यान दें। कोई क्या कह रहा है, क्या कर रहा है, इन बातों से ध्यान हटा लें। वह यह कहना भी नहीं भूलतीं कि पूंजी और साधन तो बाद की बात है, सबसे पहली शर्त है आपको खुद पर पूरा विश्वास होना चाहिए, तभी लोग साथ देंगे और यकीन भी करने लगेंगे।

जज्बे की जीत: यह सही है कि जब अभाव होता है तो संघर्ष के दिनों में ही महिलाओं की आत्मशक्ति जागृत होती है। इसके बाद वह ऐसा कुछ कर दिखाती हैं, जो अविश्वसनीय लगता है। जैसे उत्तर प्रदेश के जौनपुर के जमुहर गांव में गठित शिवम आजीविका महिला स्वयं सहायता समूह की सचिव रीता देवी ने समूह की अध्यक्ष सरिता के साथ मिलकर कुछ नया करने का मन बनाया। सवाल सामने था कि किया क्या जाए? कई दिनों के विचार मंथन के बाद तय हुआ कि सोयाबीन से पनीर बनाने की छोटी इकाई स्थापित की जाए। रीता कहती हैैं कि जब ब्लाक मुख्यालय में अपना विचार बताया तो वहां लोगों ने उन पर भरोसा किया और उनसे बड़ी मदद मिली। समूह के गठन के बाद 15 हजार रुपये का अनुदान मिला और इस इकाई की स्थापना के लिए एक लाख 10 हजार रुपये का सरकारी अनुदान मिला। हालांकि संयंत्र लगाने में करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत आई। इससे पहले समूह की सभी 12 महिलाएं प्रति सप्ताह 10-10 रुपये जमा करती थीं। इस जमा राशि से बारी-बारी से जरूरतमंद महिलाओं को आजीविका चलाने के लिए सहयोग किया जाता था। अब सोयाबीन से पनीर बनाने का संयंत्र लगाकर प्रत्येक महिला सदस्य आठ से 10 हजार रुपये प्रतिमाह की आय अर्जित कर रही है।

महिला समूह की शक्ति: मैं ममता सिंह और ये हमारी पड़ोसी प्रियंका सिंह। हालांकि हम दो ही नहीं, बल्कि हमारा समूह 20 बहनों का है। हमारे छह साल की मेहनत अब पुष्टाहार प्लांट के रूप में साकार हुई है। उत्साह से लबरेज समूह की ये महिलाएं जब उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मनियरा गांव में स्थापित प्लांट के प्रत्येक संयंत्र के बारे में बता रही थीं तो उनका आत्मविश्वास उनके चेहरे से साफ झलक रहा था।

इस समूह के बारे में प्रियंका बताती हैं, वर्ष 2017-18 में मैं आगे बढ़ी। संदीपा राय को अध्यक्ष बनाया तो ममता, शारदा, संगीता समेत 20 बहनों का साथ मिला। इसके बाद हमने मां शक्ति प्रेरणा महिला लघु उद्योग समूह की नींव रखी। गुलाल, अगरबत्ती आदि बनाते हुए हमारे बढ़ते कदम 4000 वर्ग मीटर में स्थापित फैक्ट्री तक जा पहुंचे हैैं। यहां दिन और रात की पाली में 20 महिलाएं 10-10 घंटे काम करेंगी, जबकि 10 अन्य महिलाओं को विकल्प के तौर पर तैयार किया जाएगा। आंगनबाड़ी केंद्रों तक पहुंचने वाले बाल पुष्टाहार बनाने वाले ऐसे पांच प्लांट तैयार हैं। एक में उत्पादन भी शुरू हो चुका है। इन प्लांट में करीब 300 महिलाओं को रोजगार मिलेगा।

समूह की सचिव ममता सिंह के मुताबिक इस प्लांट की स्थापना लालगंज ब्लाक के सभी स्वयं सहायता समूहों से 30-30 हजार रुपये लेकर की गई है। लाभांश सभी समूहों को समान रूप से दिया जाएगा। प्लांट में समूह की महिलाएं ही काम करेंगी, जिनकी पगार आठ हजार रुपये मासिक होगी।

वाराणसी में भी स्थापित हो रहे प्लांट: वाराणसी के ग्रामीण क्षेत्रों में भी स्वयं सहायता समूह की महिलाएं बड़ी लकीर खींचने को उद्यत हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों से जुड़ी महिलाओं व नन्हे-मुन्नों की बेहतर सेहत के लिए पूरक पुष्टाहार उत्पादन के लिए यहां छह विकास खंडों में प्लांट स्थापित किए जा रहे हैं। चिरईगांव और आराजीलाइन में स्थापित प्लांट में उत्पादन भी शुरू हो गया है। प्लांट की उत्पादन क्षमता प्रतिदिन ढाई टन पुष्टाहार की है। एक प्लांट के निर्माण पर लगभग 90 लाख रुपये खर्च हुए।

बेमिसाल बैंक मित्र: उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सरई मिश्रानी गांव की आरती दुबे की कहानी भी राधिका पटेल से मिलती-जुलती है। वह कहती हैं, माता-पिता ने कम उम्र में शादी कर दी तो लगा अब पति (राजीव) जो कि गोपीगंज में कपड़े की छोटी सी दुकान चलाते हैं, उन्हीं पर सारा संसार है, लेकिन संकल्प शक्ति से कुछ ही दिनों में सब बदल गया। दरअसल आरती पढऩा चाहती थीं और इसके लिए पैसे चाहिए थे, लेकिन वह केवल पति की कमाई से संभव नहीं था। इसलिए जनवरी 2020 में मां वैष्णो देवी स्वयं सहायता समूह से जुड़कर खुद को मजबूत करने की ठानी और अगस्त 2021 में उन्होंने बीसी सखी (बैंक मित्र) के रूप में काम शुरू किया। मात्र चार माह में ही एयरटेल पेमेंट बैंक की स्थानीय शाखा में उन्होंने करीब 300 ग्रामीणों के बचत खाते खुलवाए और एक करोड़ रुपये से अधिक के लेन-देन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बेहतर लेन-देन के लिए प्रदेश में उन्हें दूसरा स्थान मिला। उल्लेखनीय है कि इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें 21 दिसंबर, 2021 को सम्मानित भी किया। साभार जेएनएन।

फाइल फोटो 

रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com

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