वाराणसी। नकली दवा के कारोबार में लिप्त अशोक के सिकंदराबाद में दो मंजिला मकान में पत्नी परिवार के साथ रहती है। वह परिवार से मिलने सिकंदराबाद आता था। कोतवाली में उसका कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं मिला है। उसका बड़ा पुत्र भी कारोबार में हाथ बंटाता है, जो फिलहाल फरार है।
अशोक कुमार पुत्र चंद्रपाल सिकंदराबाद की टीचर्स कालोनी का निवासी है। गुरुवार को कालोनीवासियों ने आरोपित अशोक कुमार के कई राज खोले हैं। एक कालोनीवासी ने बताया कि अशोक गौतमबुद्धनगर जिले के भट्टा पारसौल गांव का मूल निवासी है। वर्ष 2005 में अशोक ने कालोनी में मकान बनाया।
नकली दवा की कमाई से खरीदे मकान व वाहन
एसटीएफ को सूचना मिल रही थी कि गिरोहों देश के विभिन्न प्रांतों में नकली दवाओं का अवैध कारोबार कर रहा है। दवाओं के हिमाचल के बद्दी में तैयार होने की जानकारी भी मिल गई। टीम कार्यवाही करती इसके पहले ही हिमाचल पुलिस सक्रिय हो गई। इससे नकली दवा बनाने वाले सतर्क हो गए।एसटीएफ कर रही तलाश
एसटीएफ के इंस्पेक्टर अनिल कुमार सिंह के नेतृत्व में एसटीएफ टीम सहायक आयुक्त औषधि नरेश मोहन, ड्रग्स इन्सपेक्टर एके बंसल, संजय दत्त, चन्द्रेश द्विवेदी, बृजेश मौर्या, प्रभारी निरीक्षक सिगरा राजू सिंह, चौकी प्रभारी रोडवेज आदित्य सिंह के साथ छापा मारकर अशोक कुमार को गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में सिगरा थाने में मुकदमा दर्ज करके अन्य की तलाश कर रही है।
नकली दवाओं का कारोबार करने वाला अशोक चर्च कालोनी में मकान या महेशपुर में गोदाम गलत जानकारी के देकर लिया था। मकान मालिक व गोदाम मालिक ने उसका पुलिस वेरिफिकेशन भी नहीं कराया था। सिगरा थाना क्षेत्र के सीएनआइ चर्च कालोनी में उसने सुनीता विलियम्स के मकान में किराए पर कमरा लिया था।पिछले डेढ़ साल से कर रहा था काला कारोबार
मकान मालिक को उसने बताया था कि पोल्ट्री फार्म के चूजों की दवा व फूड बेचता है। क्षेत्र में चूजों के लिए बिकने वाले सामानों की मंडी होने की वजह से किसी को शक नहीं हुआ। पिछले डेढ़ साल से यहां से लगातार अपना काम करता रहा। वहीं मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के महेशपुर के सरस्वती नगर में ज्ञान चंद्र पटेल का गोदाम किराये पर लिया था। गोदाम मालिक के अनुसार उपकार ट्रांसपोर्ट के आरबी सिंह और सोनू ने छह महीने पहले गोदाम किराए पर लिया था। उन्होंने एग्रीमेंट भी कराया नहीं कराया था। एसटीएफ की छापेमारी हुई तो नकली दवाओं के बारे में जानकारी हुई। किसी को शक ना हो इसलिए अशोक स्थान भी बदलता था।
ऐसे शुरू किया काला कारोबार
अशोक जब आटो चला रहा था तो उसी दौरान उसकी मुलाकात बुलंदशहर के ही नीरज से हुई। वह नकली दवाओं का काम करता था। अशोक उसके माल की ढुलाई का काम करने लगा। यहीं से उसे इस काले कारोबार के बारे में जानकारी हुई। शुरू में वो नीरज से थोड़ी बहुत नकली दवा खरीदकर स्थानीय झोलाछाप डाक्टरों को बेचने लगा।2019 में शुरु किया था कारोबार
वर्ष 2019 में अमरोहा में नीरज की बेची गई नकली दवा पकड़ी गई। नीरज का नाम आने के बाद पुलिस नीरज को पकड़कर ले गई। इस मामले में नीरज के पिता ने पुलिसवालों पर अपहरण का मुकदमा दर्ज कराया था। चार साल पहले हुई इस घटना के बाद अशोक वहां से भागकर वाराणसी आ गया।फर्जी बिल्टी पर मंगाता था दवाएं
यहां उसने रोडवेज बस स्टेशन के पीछे चर्च कालोनी में किराए का कमरा लिया और लहरतारा में एक गोदाम बनाया। इसके बाद उसने नामी-गिरामी पेटेंट दवा कंपनियों के नाम की नकली दवाएं बनाने वाले हरियाणा स्थित पंचकुला के अमित दुआ, हिमाचल प्रदेश स्थित बद्दी के सुनील व रजनी भार्गव से संपर्क किया और नकली दवाएं, फर्जी बिल्टी व बिल के जरिए ट्रांसपोर्ट के माध्यम से दवाएं मंगाने लगा। हाईस्कूल फेल है गिरोह का सरगना
सरगना अशोक कुमार ने वर्ष 1987 में बुलंदशहर के किसान इंटर कालेज से हाईस्कूल की पढ़ाई की लेकिन परीक्षा में फेल हो गया। इसके बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी और गद्दे की कंपनी में मजदूरी करने लगा। वर्ष 2003 में मजदूरी छोड़कर वो सात साल आटो रिक्शा चलाता रहा। यहां अच्छी कमाई नहीं हुई तो फिर गद्दे की कंपनी में नौकरी करने लगा। इस बार उसने यहां लगातार 10 वर्षो तक प्रति माह 12 हजार काम किया। बाद में एक बार फिर उसकी नौकरी छूट तो वो आटो चलाने लगा।
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7.5 करोड़ की जब्त की गई नकली दवाएं |
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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