Author:दिव्यांशी
न्यूज डेस्क। सम्पूर्ण विश्व में प्रत्येक वर्ष 11, जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। वैसे तो विश्व जनसंख्या दिवस 1990 से प्रत्येक वर्ष 11, जुलाई को मनाया जाता रहा है लेकिन इस वर्ष यह दिवस खास है क्योंकि इस बार इसकी थीम महिलाओं पर केंद्रित है जो कि कुछ इस प्रकार है- “लैंगिक समानता की शक्ति को उजागर करना: हमारी दुनिया की अनंत संभावनाओं को अनलॉक करने के लिए महिलाओं और लड़कियों की आवाज़ को ऊपर उठाना।” आज 21वीं सदी के विश्व में वैश्विक जनसंख्या की 49.7 प्रतिशत आधी आबादी की उपस्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आज जब सम्पूर्ण विश्व में भारत शीर्ष आबादी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है तो इस आबादी से जुड़े कई आयाम भी दृष्टिगोचर होते हैं। कुछ दशक पहले जब बढ़ती आबादी पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी तब 1987 में पूरी दुनिया में इस बात पर नजर रखी जा रही थी कि कब दुनिया की आबादी 5 बिलियन होगी और अनुमानतः वह दिन 11 जुलाई था। अगले वर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की गवर्निंग काउंसिल की ओर से इस दिन की स्मृति में 5 बिलियन डे मनाया गया। इस समस्या पर पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए 1990 में यूएनओ ने 11, जुलाई को ‛वर्ल्ड पापुलेशन डे’ घोषित कर दिया।
ऐसे में यदि भारत के संदर्भ में बात की जाए तो संयुक्त राष्ट्र के हालिया आंकड़े से पता चलता है कि भारत की जनसंख्या 1428.6 मिलियन के साथ चीन को (1425.7मिलियन) पीछे छोड़ते हुए विश्व की सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। यदि हम आयु वर्ग के अनुसार देखें तो भारत की 25 प्रतिशत आबादी 0-14 वर्ष आयु वर्ग है, 10-19 में 18 प्रतिशत, 10-24 में 26 प्रतिशत,15-64 में 68 प्रतिशत और 7 प्रतिशत आबादी 65 वर्ष के ऊपर है।
अकादमिक जगत भारत की जनसंख्या को लेकर तमाम प्रश्नों का विश्लेषण अलग-अलग आयामों से करता रहा है। कुछ विद्वान इसे जनसांख्यिकी लाभांश की तरह देखते हैं तो कुछ इसे जनसंख्या भार की तरह। अब हमारे समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जब हम पूरी दुनिया में सबसे अधिकतम आबादी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं तो यह हमारे लिए सकारात्मक साबित होगा या नकारात्मक।
विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर यदि समस्त आयामों पर बात की जाए तो सबसे पहले हम यह देख सकते हैं कि जनसंख्या वृद्धि हमारे लिए नकारात्मक कैसे साबित हो सकती है।
सर्वप्रथम यह स्पष्ट है कि जितनी अधिक जनसंख्या होगी उतना ही अधिक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन होगा। ऐसे में अंधाधुंध प्राकृतिक संसाधनों का दोहन हमारे द्वारा लिये गये सतत विकास के संकल्पों पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। एक अन्य पहलू भारत की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है ऐसे में अत्यधिक जनसंख्या बढ़ने से कृषि जोतों में कमी आएगी और कृषि योग्य भूमि का अत्यधिक दोहन कृषि विकास को भी बाधित करेगा। बढ़ती हुई जनसंख्या देश के प्रति व्यक्ति आय पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इससे प्रति व्यक्ति आय में कमी आती है, जिससे व्यक्ति का जीवन स्तर नीचे होता होता चला जाता है और आगे चलकर यह अन्य समस्याओं को भी जन्म देता है। सीमित संसाधनों के चलते यदि सरकार सभी जनसंख्या को रोजगार उपलब्ध कराने में असफल साबित होती है तो यह चोरी ,हिंसा व अपराध जैसे अनेक असामाजिक समस्याओं का भी कारक है।
उपरोक्त नकारात्मक निष्कर्षों के बावजूद भी बढ़ती जनसंख्या में उम्मीद की रोशनी को देखा जा सकता है। हमें यह समझने की भी जरूरत है कि यह जनसंख्या जिसमें की अत्यधिक युवा आबादी है यह भारत के लिए किस प्रकार मील का पत्थर साबित हो सकती है।
यदि हम अधिकतम जनसंख्या के सकारात्मक पहलुओं को देखें तो हम यह भी देख पाते हैं कि अधिक जनसंख्या से गरीबी नहीं बढ़ती बल्कि यह हमें समृद्ध बनाती है। अर्थशास्त्री जूलियस साइमन ने 1981 की अपनी एक पुस्तक में स्थिति को इंगित किया है कि जब-जब जनसंख्या विस्फोट हुआ है तब-तब उत्पादकता में भी अपार वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए माल्थस के समय से लेकर आज तक की तुलना करें तो हम देखते हैं इसी विश्व में जहां एक अरब लोग थे वहीं अब 7.7 अरब लोग हैं। इसके साथ ही हम उस समय के धनवान व्यक्ति से आज हम बेहतर जीवन जी रहे हैंl
एक बड़ी आबादी को यदि बेहतर तरीके से प्रशिक्षित किया जाए तो यह बृहद मानव आबादी उच्च आर्थिक विकास और बेहतर जीवन स्तर के संदर्भ में भी देखी जा सकती है। संयुक्त राष्ट्र के नवीनतम आंकड़ों की मानें तो वर्तमान में भारत में 15-64 आयु वर्ग की आबादी 68 प्रतिशत है। जिसे जनसांख्यिकीय लाभांश के तौर पर देखा जा रहा है और यह माना जा रहा है कि अगले 25 वर्ष में प्रति 5 कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों में से एक भारत में रह रहा होगा। ऐसे मे यदि भारत इस जनसांख्यिकी लाभांश का बेहतर प्रबंधन करने में सफल होता है तो यह भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
कूटनीतिक संदर्भ में देखें तो संयुक्त राष्ट्र में भारत एक लंबे समय से स्थाई सदस्यता की दावेदारी पेश करता आ रहा है। ऐसे में अब भारत द्वारा एक बड़ी आबादी के प्रतिनिधित्वकर्त्ता के रूप में अपनी दावेदारी को और भी मजबूती के साथ संयुक्त राष्ट्र में पेश किया जा सकता हैl
जनसंख्या वृद्धि को सिर्फ सैद्धांतिक बातों से ही सकारात्मक नहीं कहा जा सकता है बल्कि व्यवहारिक प्रयास भी विश्लेषण करने योग्य है। यदि हम भारत सरकार द्वारा किए गए प्रयासों की बात करें तो इस बढ़ती हुई जनसंख्या को जनसांख्यिकी लाभांश के रूप में परिवर्तित करने के लिए भारत सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयास उल्लेखनीय हैं-
1952 में परिवार नियोजन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करने वाला भारत दुनिया का पहला देश था। कार्यक्रम में अपने शुरुआती दिनों से लेकर आज के दृष्टिकोण में व्यापक बदलाव आया है, आज ध्यान प्रजनन स्वास्थ्य पर है तथा मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने पर विशेष रुप से जोर दिया जा रहा है। 2000 में शुरू की गई राष्ट्रीय जनसंख्या नीति ने भी प्रजनन क्षमता को कम करने में मदद की है।
सरकार ने जनसांख्यिकीय लाभांश के लाभों को प्राप्त करने के लिए अनेक उपाय किए हैं। इन उपायों में भारतीय कार्यशील जनसंख्या का कौशल विकास करना प्रमुख है जिसके तहत 2015 में भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना प्रारंभ की गयी। जिसमें 500 मिलियन लोगों को कौशल रूप से प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखा गया।
2015 को प्रधानमंत्री मुद्रा लोन योजना की शुरुआत की गई थी इस स्कीम के तहत सरकार देश में एंटरप्रेन्योरशिप यानी स्वरोजगार को बढ़ावा देने की कोशिश करती है तथा इससे जुड़ी हुई एक अन्य योजना जिसमें महिला उद्यमियों को वरीयता दी जाती है जिससे कि वह भी स्वरोजगार हेतु प्रेरित हो सकें। 2015 में इसके लिए सरकार द्वारा अन्नपूर्णा योजना प्रारंभ की गई। इसके साथ साथ ही भारत सरकार द्वारा बच्चियों को ध्यान में रखते हुए अन्य योजनाएं जैसे सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान इत्यादि प्रारंभ किया गया है जिससे कि बेटियों के भविष्य को भी सुरक्षित रखा जा सके।
जैसा कि हमने देखा इस वर्ष यानी 2023 की जनसंख्या दिवस की थीम महिलाओं व बालिकाओं पर मुख्य रूप से केंद्रित है ऐसे में भारत सरकार द्वारा किए गए उपर्युक्त प्रयास इनके लिए सार्थक साबित हो सकते हैं।
जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि भारत की आबादी अब विश्व में पहले पायदान पर आ चुकी है जिसमें की कार्यशील आबादी का प्रतिशत सर्वाधिक है। ऐसे में यदि सरकार द्वारा इसका बेहतर प्रबंधन किया जाए और कार्यशील आबादी की जागरूकतापूर्ण सहभागिता सुनिश्चित की जाए तो पूरी दुनिया में हमारी आबादी के सकारात्मक परिणाम अवश्य ही सामने आएंगे तथा यह आबादी विकसित भारत और विश्व गुरु के संभव सपने को निश्चित रूप से साकार करने में कारगर साबित होगी।
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दिव्यांशी |
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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