लिखत लिखत जुग गया ,लिख सका न कोय,मां की ममता अनमोल कहावे,बाट सका न कोय

लिखत लिखत जुग गया ,लिख सका न कोय,मां की ममता अनमोल कहावे,बाट सका न कोय

     "मां को समर्पित लेख"


लिखत लिखत जुग गया ,लिख सका न कोय ।

मां की ममता अनमोल कहावे,बाट सका न कोय ।


घर-घर क्लेश सब करे, कलेस करावे कौन ।

आदत अपनी भुल गया ,सब जग बैरी होय ।।


प्रेमी प्रेमी सब करें, प्रेमी हुआ फरार।

राम छबीला कह गए, जग ही जिम्मेदार।


चलती नैया भटक गई, बीच मझेदार में।

भंवरा भटक भटक कर रोया, इस संसार में।।


मरा तो मर ना सका, इक पगले संसार में।

गली मोहल्ला भटक रहा ,चोरो की बाजार में।।


मटक मटक कर भटक गए, नैनो कि बाजार में।

प्रेम की नगरी सभैय बुलावे , माया की बाजार में।


 घेरत घेरत जग के ,छलकत आसू ढह गईल।

 ज्ञान की बतिया सब पढ़ावें,बहक के अखियां रह गईल


राही चलत जग हिले,  पग हिलावे कौन । 

बुढ़िया मरे जवा हंसे।  नीर बहाएं कौन ।

शिवाजी,लेखक

लेखक: शिवाजी

पत्रकार, गाजीपुर 

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