चर्चित ईशा हत्याकांड में दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा, और पचास हजार की जुर्माना

चर्चित ईशा हत्याकांड में दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को अदालत ने सुनाई उम्रकैद की सजा, और पचास हजार की जुर्माना

कानपुर। उत्तर प्रदेश के कानपुर में 2015 के चर्चित ईशा हत्याकांड में दोषी ठहराए गए पूर्व दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश शुचि श्रीवास्तव की अदालत ने इस फैसले में ज्ञानेंद्र को हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा दी।

वहीं, मामले में शामिल अन्य पांच आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। इस फैसले से पीड़िता ईशा सचान के परिवार को 10 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद न्याय मिला है, जो पुलिसकर्मी की क्रूरता और धोखे की एक दर्दनाक कहानी को उजागर करता है । बताते चले जिस वक्त इस सनसनीखेज वारदात को अंजाम दिया गया उस वक़्त दरोगा ज्ञानेंद्र सिंह कानपुर के थाना किदवई नगर की साकेत नगर चौकी का इंचार्ज था । और शहर में काफी चर्चित दरोगाओं में इसकी गिनती होती थी।

क्या थी पूरी घटना?

ये घटना 19 मई 2015 की है, जब ज्ञानेंद्र सिंह ने अपनी कथित प्रेमिका/पत्नी ईशा सचान की बेरहमी से हत्या कर दी। पुलिस जांच के अनुसार, ज्ञानेंद्र ने ईशा का गला चाकू से काटा और फिर उसके सिर को धड़ से अलग कर दिया, ताकि शव की पहचान मुश्किल हो जाए। हत्या के बाद उसने ईशा का धड़ कौशांबी जिले के महेवा घाट पुल के पास यमुना नदी में फेंक दिया। सिर को वह कानपुर वापस लेकर आया और कहीं छिपा दिया, जो आज तक पुलिस को नहीं मिला।

22 मई 2015 को कौशांबी पुलिस को एक सिरकटी लाश मिली, जिसकी पहचान ईशा के रूप में हुई। पहचान के लिए पुलिस ने ईशा के शरीर पर बने एक टैटू, उसकी घड़ी और गहनों का सहारा लिया। ईशा के परिवार ने बताया कि हत्या से पहले ज्ञानेंद्र ने ईशा को घर से बाहर ले जाने का बहाना बनाया था। जिसमे कुछ युवकों ने उसका साथ दिया था, जांच में पता चला कि तत्कालीन दरोगा ज्ञानेंद्र ने अपने उन्ही साथियों के साथ सबूत मिटाने की कोशिश की, लेकिन वैज्ञानिक सबूतों और गवाहों के बयानों से उसका अपराध साबित हो गया और उसे जेल भेज दिया गया। साभार केआईटी

फाइल फोटो 

रिपोर्ट:अमित कुमार सिंह
एडिटर इन चीफ(परमार टाईम्स)
parmartimes@gmail.com

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