लखनऊ । उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल की अहम भूमिका हैं। प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल की अहम भूमिका है। आंकड़ों पर नजर डालें तो यही समझ में आता है कि जिस भी सियासी दल को पूर्वांचल का आशीर्वाद मिला है, सत्ता का ताज उसी के सिर सजा है। विधानसभा की 403 सीटों में से 162 सीटें पूर्वांचल से आती हैं। आजादी के बाद लम्बे अरसे तक पूर्वांचल कांग्रेस का गढ़ रहा लेकिन समय के साथ कांग्रेस कमजोर होती गई। इसके बाद बसपा और सपा ने पूर्वांचल जीतकर सरकार बनाई लेकिन 2014 के बाद बदले हालत में बीजेपी ने पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत कर लिया है।
2014 में नरेंद्र मोदी का जादू पूर्वांचल पर सिर चढ़ कर बोला
2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू पूर्वांचल के मतदाताओं पर सिर चढ़ कर बोला, नतीजन आजमगढ़ की सीट छोड़कर सभी लोकसभा की सीटें भाजपा की झोली में गयी। मोदी के व्यक्तित्व और कार्यशैली के मुरीद पूर्वांचल ने 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा पर जमकर प्यार लुटाया और 162 में से भाजपा को 115 सीटें मिली थी वहीं सपा के खाते में 17 और बसपा की झोली में 14 सीटें ही गईं। भाजपा ने इस चुनाव में अपने बलबूते 312 सीटें हासिल की और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से उतारने का फैसला सही
भाजपा के एक कद्दावर नेता ने सोमवार को कहा कि योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर से उतारने का पार्टी आलाकमान का फैसला पार्टी के हक में निर्णायक साबित हो सकता है। भाजपा हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ता, पदाधिकारी भी चुनाव मैदान मे योगी की जीत के लिए मैदान पर उतर चुके हैं और सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यों और उपलब्धियों को जन-जन मे पहुंचा रहे हैं।
चुनाव के मद्देनजर BJP ने लगाई लोकार्पण और शिलान्यासों की झड़ी
चुनाव में पूर्वांचल की अहम भूमिका को देखते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव की घोषणा से पहले कुशीनगर, वाराणसी, सुलतानपुर, गोरखपुर में परियोजनाओं के लोकार्पण और शिलान्यास की झड़ी लगा कर माहौल को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू कर दी थी। वहीं सपा ने पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व की बदौलत पूर्वांचल की राजनीति में खासा दखल रखने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन कर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है।
अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिये सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के परिवार के प्रति भी सहानुभूति पूर्ण रवैया अपनाया तो दूसरी ओर पूर्वांचल के कद्दावर ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी को अपने खेमे में लाकर सपा ने ब्राह्मण समीकरण बैठाने की कोशिश भी की है।
2012 में सपा के पक्ष में थी पूर्वांचल की हवा
2012 के चुनाव मे भाजपा का पूर्वांचल के 10 जिलों बस्ती, संत कबीर नगर, चंदौली, गाजीपुर, मीरजापुर, सोनभद्र, भदोही, आजमगढ़, मऊ, बलिया में खाता तक नहीं खुला था हालांकि गाजीपुर में भाजपा के सहयोगी दल को 2 सीट हासिल करने में सफलता मिली थी। 2012 में सपा की लहर में गाजीपुर में 7 में 6 सीट समाजवादियों के खाते में गई तो जौनपुर में 9 में से 7 सीट सपा की हो गई।
भदोही की तो तीनों सीटें सपा के नाम थीं। आजमगढ़ और बलिया में सपा का जबरदस्त प्रदर्शन रहा, आजमगढ़ में 10 में से 9 तो बलिया में 7 में से 6 सीटें मिलीं। मीरजापुर में 5 में से 3 और सोनभद्र व मऊ में 4 में से दो-दो सीट सपा की हुई थी। कुशीनगर और देवरिया में भी 7 में से पांच-पांच सीटें सपा के नाम रहीं, उस चुनाव में पूर्वांचल के 17 जिलों में से 10 जिलों में भाजपा का खाता भी नहीं खुल सका था।
2017 में सपा अपना अस्तित्व बचाने के लिये कर रही थी संघर्ष
हालांकि 2017 में हालात बिल्कुल विपरीत थे जब मोदी की आंधी में सपा पूर्वांचल में अपना अस्तित्व बचाने के लिये संघर्ष करती नजर आयी थी। बस्ती और संत कबीर नगर में सपा का नामोनिशान भी नहीं बचा था।सिद्धार्थनगर की भी सभी सीटें भाजपा की मानी गईं क्योंकि 5 में से 4 सीट भाजपा के खाते में और एक सीट उसके सहयोगी दल अपना दल को मिली।
इसके अलावा गोरखपुर में 9 में से 8, वाराणसी में 8 में से 6, देवरिया में 7 में से 6, चंदौली में 4 में से 3, मीरजापुर में 5 में से 4, सोनभद्र व मऊ में 4 में से तीन- तीन, भदोही में 3 में से 2, महराजगंज में 5 में से 4 और कुशीनगर में 7 में से 5 सीटें भाजपा के खाते में आईं। वाराणसी,गाजीपुर दो-दो, जौनपुर, मीरजापुर, सोनभद्र, कुशीनगर और सिद्धार्थनगर में एक-एक सीटें सहयोगी दलों को मिली थी। साभार पीके।
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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