इस बार विधानसभा चुनाव में बाहुबलियों की होंगी कड़ी परीक्षा, राह नही होगा आसान

इस बार विधानसभा चुनाव में बाहुबलियों की होंगी कड़ी परीक्षा, राह नही होगा आसान

लखनऊ । उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार कई बाहुबली मैदान में हैं तो कुछ बाहुबली पर्दे के पीछे से अपने चहेतों की मदद कर रहे हैं। यूपी के सियासी रण में बड़ी पार्टियों ने बाहुबली उम्मीदवारों से किनारा कर लिया है।

इसको देखते हुए इन दबंग विधायकों ने छोटे दलों से टिकट लेकर या बड़े दलों से अपनो को टिकट दिलाकर अब उन्हें चुनावी वैतरणी पार कराने में पूरी मदद कर रहे हैं। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि इन बाहुबलियों का दम चुनाव में दिखेगा या जनता उन्हें नकार देगी लेकिन फिलहाल ये पूरे तन-मन और धन से चुनावी गणित बनाने में जुटे हुए हैं।

गोरखपुर में "हाते" की हनक को बनाए रखना चुनौती

गोरखपुर के सियासी रण में हाता हमेशा से ही गोरक्षपीठ को चुनौती देता आया है। यूपी में जब जब बाहुबलियों की बात आती है तब तब गोरखपुर के बहुचर्चित हाते का जिक्र जरूर होता है। इस बार हाते की तरफ से बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा सीट से अपनी किस्मत आजम रहे हैं। हरिशंकर तिवारी 22 साल तक विधायक रहे। यूपी की सियासत में कई बार मंत्री रहे और अब उनके बेटे विनय शंकर तिवारी हाते की हनक बनाए हुए हैं। वह सपा के टिकट पर चिल्लूपार से मैदान में हैं। इस सीट पर 37 सालों से ब्राह्मणों का कब्जा रहा है। इस बार भी विनय शंकर तिवारी इस इतिहास को कायम रखने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।

मुख्तार अंसारी ने खुद की बजाए अब्बास पर लगाया दांव

गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद के रहने वाले मुख्तार अंसारी को पूर्वांचल के दबंग बाहुबलियों में शुमार किया जाता है। वह मऊ की सदर सीट से कई बार विधायक रह चुके हैं लेकिन इस समय उनके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। वह पिछले लगभग एक दशक से जेल में ही हैं। लेकिन उनका रसूख उतना ही बरकरार है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछली बार मऊ जिले में मोदी की रैली और बीजेपी की लहर के बावजूद मऊ सदर सीट से वह जीतने में कामयाब हो गए थे। योगी सरकार बनने के बाद से ही यूपी में उनके दुर्दिन शुरू हो गए थे। उनकी कई सारी सम्पत्तियों की कुर्की कर दी गई। लेकिन मुख्तार अंसारी ने इस बार विपरित परिस्थितियों को देखते हुए खुद की बजाए बेटे अब्बास अंसारी को अपनी सीट से उतारने का फैसला किया था। अब देखना है कि क्या अब्बास अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा पाते हैं या नहीं।

भदोही में बाहुबली विजय मिश्रा पर सबकी नजर

यूपी में बाहुबलियों की जब जब बात आती है तो भदोही के विजय मिश्रा की बात जरूर होती है। भदोही के ज्ञानपुर सीट से विधायक विजय मिश्रा को इस बार निषाद पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वो प्रगतिशील मानव समाज पार्टी की तरफ से चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। हालांकि विजय मिश्रा फिलहाल जेल में हैं और वहीं से अपनी चुनावी कमान संभाल रहे हैं। हालांकि विजय मिश्रा ने योगी सरकार पर ब्राह़मणों के उत्पीड़न का आरोप लगाया था।

पूर्वांचल के माफिया ब्रजेश सिंह के भजीते सुशील सिंह मैदान में

पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी के धुर विरोधी और माफिया से माननीय बने ब्रजेश सिंह भी अब राजनीति में आ गए हैं। ब्रजेश सिंह फिलहाल एमएलसी हैं और उनका भतीजा सुशील सिंह चंदौली की सैयदराजा सीट से विधायक है। सुशील पहली बार चंदौली के धानापुर से विधायक बने थे। इसके बाद वह सैयदराजा से बीजेपी के विधायक हैं। अबकी बार चौथी बार मैदान में हैं और पांचवी बार माननीय बनने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। भतीजे को जिताने के लिए ब्रजेश ने पूरी ताकत लगा रखी है।
कुंडा में राजा भैया के सामने सब फेल
पूर्वांचल में बाहुबलियों का जिक्र हो और राजा भैया उर्फ रघुराज प्रताप सिंह का नाम न लिया जाए, ऐसा कैसे हो सकता है। राजा भैया पहली बार 1993 में पहली बार विधायक बनकर सदन में पहुंचे थे। तब से वो लगातार तीन दशकों तक इस सीट पर जीत दर्ज करते आ रहे हैं। यूपी में चाहे मोदी की आंधी चली हो या फिर मायावती की हनक प्रतापगढ़ के भदरी राजघराने की हनक हमेशा बरकरार रही। राजा भैया के रसूख का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वो बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार और मुलायम सरकार में मंत्री रहे। इसके बाद अखिलेश यादव के कार्यकाल में भी वो कैबिनेट मंत्री रहे। लेकिन अब वो जनता दल लोकतांत्रिक पार्टी के नाम से एक अलग पार्टी का गठन कर चुके हैं। हालांकि इस बार अखिलेश यादव राजा भैया को घेरने में जुटे हैं और उनको हराने के लिए वह रैली भी कर चुके हैं लेकिन राजनीति के माहिर खिलाड़ी राजा भैया अपने ही अंदाज में उनका जवाब भी दे रहे हैं। साभार ओ.आई।

फाइल फोटो

रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com

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