जौनपुर । जनपद के विकासखंड महराजगंज अंतर्गत ग्राम बगौझर मे स्थित अतिप्राचीन बाबा कंजातीबीर धाम का अन्वेषण करने प्राचीन इतिहास अन्वेषक अमित श्रीवास्तव पहुंचे और अति प्राचीन मूर्ति के बारे में कई रहस्योद्घाटन किया।
उन्होंने बताया कि मूर्ति बेसाल्ट पत्थर की बनी हुई है और यह पत्थर पूर्वांचल में नहीं मिलता। मूर्ति हिन्दू देवता सूर्य की प्रतिमा है। क्योंकि इस मूर्ति में अश्वरथ बने हुए हैं तथा साथ ही सूर्य चक्र भी बना हुआ है । मूर्ति की लम्बाई 7 फिट से ज्यादा है। मूर्ति के चारों ओर अलंकरण किए गए हैं तथा लघु मूर्तियों की एक लम्बी श्रृंखला है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रतिहार युगीन शिल्पकला है। मूर्ति की कमर में लगी हुई कटार का चित्रांकन बड़ा ही विचित्र है क्योंकि हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्ति में अभी तक कहीं भी कटार मिलने का प्रमाण नहीं मिलता। ऐसा प्रमाण मात्र इरान में ही मिलता है जहाँ इरानी देवि- देवताओं के कमर में कटार लगी होती थी। मगर यह तब की बात है जब इरान फारस हुआ करता था। अगर इरान शब्द की बात करें तो इसका मतलब फारसी भाषा में आर्यों का देश होता है । खैर हम बात कर रहे हैं बाबा कंजातीबीर धाम की, अगर इरान की बात करें तो वहाँ कंजात सूर्य देव को कहते हैं। भारत और इरान के संबंधों की बात करें तो गुप्त काल में दोनों देशों के संबंध अच्छे रहे हैं। मगर मूर्ति की शिल्पकला प्रतिहार युगीन है अत: हम कहते सकते कि प्रतिहारों के समय में इरान के शिल्पकार दक्षिणी भारत के बेसाल्ट पत्थर को लेकर इरानी शिल्पकला से भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया।
प्राचीन इतिहास अन्वेषक अमित श्रीवास्तव ने एक और रोचक रहस्योद्घाटन किया। मन्दिर में ही स्थित एक अन्य प्राचीन मूर्ति का भी अन्वेषण करने हुए लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। जिस मूर्ति को लोग देवगुरु वृहस्पति की मूर्ति समझ रहे थे। श्री श्रीवास्तव ने उस मूर्ति को भगवान सूर्य के दामाद भगवान चित्रगुप्त जी की मूर्ति बताया । उन्होंने बताया कि मूर्ति सूर्य प्रतिमा की तरह बेसाल्ट पत्थर की ही बनी हुई है । सूर्य प्रतिमा की ही समकालीन है। मूर्ति में नीचे की तरफ दाहिनी और बाईं तरफ क्रमश: माता दक्षिणा जो भगवान सूर्य की पुत्री (क्षत्राणी) हैं तथा माता ऐरावती जो देवॠषि सुशर्मा की पुत्री (ब्रह्माणी) हैं की मूर्ति बनी हुई है। मूर्ति के एक हाथ मे लेखनी तथा दूसरे हाथ में बहीखाता है। शेष दोनो हाथ ध्यान मुद्रा में है। मूर्ति के दोनों कंधों पर क्रमश: माता दक्षिणा के चारों पुत्रों में से एक तथा दूसरी तरफ माता ऐरावती के बारह पुत्रों में से एक की मूर्ति बनी हुई है ।अत: यह मूर्ति देवगुरु वृहस्पति की न होकर भगवान चित्रगुप्त जी की है।
खुदाई से प्राप्त हुए कुछ अन्य मूर्तियों व खम्भों के बारे श्री श्रीवास्तव ने बताया कि भगवान सूर्य और भगवान चित्रगुप्त जी की मूर्तियों के अलावा अन्य सभी मूर्तियाँ बलुआ पत्थर की बनी हुई हैं। अर्थात गर्भगृह की मूर्तियाँ मात्र भगवान सूर्य और भगवान चित्रगुप्त जी की मूर्ति है बाकी सभी मूर्तियाँ बाहर की दिशा में लगी हुई होनी चाहिए । कुछ लघु मूर्तियाँ खम्भों के टूटे हुए अवशेष पर बनी हुई है । मूर्तियाँ बहुत ही चिकनी है तथा एक एक भावभंगिमा तथा सिलवटों को भी बड़ी बारीकी से उकेरा गया है। ऐसा लगता है जैसे किसी मशीन से इन मूर्तियों को बनाया गया हो। प्रतिहारों के समय में मूर्तियाँ बहुत ही उन्नतशील अवस्था में रही हैं।
अमित श्रीवास्तव जी ने बताया कि गुप्त काल से पहले मूर्तियों के लिए मंदिर अस्थायी होते थे। अधिकांशत: मिट्टी के चबूतरे पर ही मूर्तियाँ बनी होती थी । अगर कहीं छत वाले मंदिर होते तो अधिक सम्भावना होती थी कि छत मकानों की तरह सपाट और समतल होते थे। यहाँ पर मिले हुए खम्भों के अवशेषों से स्पष्ट हो जाता है कि यह सभी संरचनाएं गुप्त काल के बाद की हैं। अमित श्रीवास्तव ने इन मूर्तियों को बारहवीं शताब्दी का बताया है।
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फाइल फोटो |
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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