नोएडा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट तथा राज्य की अर्थव्यस्था को रफ्तार दे सकने वाली उत्तर प्रदेश फिल्म सिटी को धरातल पर उतारने की तैयारी शुरू हो चुकी है।
यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सेक्टर 21 में 1,000 एकड़ जमीन पर विकसित होने वाली इंटरनेशनल फिल्म सिटी परियोजना में देश-विदेश की 29 कंपनियों ने अपनी रूचि दिखाई है। इस साल दिसंबर के आखिर तक तय हो जायेगा कि कौन सी कंपनी इस प्रोजेक्ट को पूरा करेगी।
इंटरनेशनल फिल्म सिटी निर्माण के लिये 7 नवंबर को 29 कंपनियों ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ प्री-बिड में हिस्सा लिया। औद्योगिक विकास आयुक्त अरविंद कुमार की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में कंपनियों ने अपनी कुछ जिज्ञासा जाहिर की तथा सुझाव दिये। 9 नवंबर तक इन कंपनियों को अपने सुझाव लिखित तौर पर देने हैं। प्री-बिड में देश-विदेश की कई नामी कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है।
पीवीआर, फॉक्स, आइडा मैनेजमेंट, यूनिवर्सल, केईसी इंटरनेशल, जेटवर्क इंटरनेशनल, श्रीहंस डेवलपर्स, ज्वाइंट रॉकेट मीडिया एंड एंटरटेनमेंट, ट्यूलिप इंटरनेशल, बालाजी फिल्म्स, इंवेटम टेक्नोलॉजी, एआरके विजन, ओरिएंट स्ट्रक्चर, गोदरेज, आयरन स्टोर प्राइवेट लिमिटेड, नेनो सेंट्रिक, व्हिसिलिंग वुड इंटरनेशनल, बीडीपी, ग्रीन विच इस्टेट, पॉपुलस, एल एंड टी, ओमेक्स, गोल्डेन बर्ड, अर्नस्ट एंड यंग, एमथ्रीएम, नाट मेंनेशन, इमैजिनक्रोन इंफ्रा, आरएमजेड क्रॉप तथा स्काई लाइन ने प्रतिभाग किया।
फिल्म सिटी के लिये 16 दिसंबर तक निविदा बोली दाखिल की जा सकेगी और 21 दिसंबर को टेक्निकल बिड खुलने के साथ ही इस परियोजना के विकास का पहला कदम रख दिया जायेगा।
इस परियोजना की डीपीआर बनाने वाली सीबीआरई साऊथ एशिया ने फिल्म सिटी विकास के लिये दो योजना तैयार की है, कंपनियों को इनमें से किसी एक तरीके से फिल्म सिटी के विकास पर काम करना है। फिल्म सिटी का विकास तीन चरणों में 2029 तक पूरा होगा।
उत्तर प्रदेश में फिल्म सिटी का निर्माण योगी आदित्यनाथ का सपना है, जिसके सहारे वह मुंबई फिल्म उद्योग में भेदभाव, भाई-भतीजावाद और क्षेत्रवाद से जूझते उत्तर भारतीयों को अपने राज्य में मौका उपलब्ध कराने को प्रतिबद्ध हैं।
बिहार से ताल्लुक रखने वाले युवा अभिनेता सुशांत सिंह की असमय मौत और उसके बाद बॉलीवुड के भीतर का परिवारवाद सामने आने के बाद हिन्दी पट्टी को यह समझने का मौका मिला कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री पर किस कदर कुछ गैर हिन्दी भाषी समूहों का बोलबाला है, जबकि उनकी फिल्मों को कमाई करवाने में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे हिन्दी भाषी राज्यों के 60 करोड़ दर्शकों का बड़ा हाथ है।
भारतीय इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का सालाना टर्नओवर 2 लाख 80 हजार करोड़ है, जिसमें हिन्दी इंटरटेनमेंट की हिस्सेदारी 43 फीसदी है। ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म पीडब्ल्यूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय मीडिया एंड इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री 2026 तक 4 लाख 30 हजार करोड़ तक पहुंच जायेगी। अकेले फिल्म से 2022 में 12,515 करोड़ रुपये के व्यापार का अनुमान लगाया गया है।
कोविड से पहले वर्ष 2019 में हिन्दी फिल्मों ने 10,948 करोड़ का व्यापार किया था। रिपोर्ट में फिल्म इंडस्ट्री के 2026 तक 16,198 करोड़ तक पहुंच जाने अनुमान लगाया गया है। भारत में ओटीटी वीडियो अभी अपने प्रारंभिक चरण में है। 2026 तक इसके 21,031 करोड़ रुपये का उद्योग बन जाने का अनुमान भी रिपोर्ट में लगाया गया है।
पीडब्ल्यूसी का अनुमान है कि 19,973 करोड़ रुपये सदस्यता आधारित तथा 1058 करोड़ रुपये वीओडी यानी वीडियो ऑन डिमांड से आयेंगे। टीवी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का आकार 2022 में 40 हजार करोड़ का है, जिसमें विज्ञापन की हिस्सेदारी 35,270 करोड़ है। 2026 तक टीवी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का योगदान 49 हजार करोड़ तक पहुंच जायेगा, जिसमें विज्ञापन की हिस्सेदारी 43,568 करोड़ रहने का अनुमान है।
महाराष्ट्र सरकार की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा हिन्दी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से पैदा होता है। फिल्म इंडस्ट्री में 70 फीसदी से ज्यादा उत्तर भारतीय अपना योगदान दे रहे हैं। इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री रोजगार एवं राज्य की आय का भी एक सशक्त माध्यम है।
सवाल है कि जब तमाम क्षेत्रीय भाषाओं की इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री अपने इलाकों में सफलतापूर्वक फल-फूल रही है तो हिन्दी के साथ ऐसा क्यों नहीं हो सकता है? हिन्दी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री मराठीभाषी राज्य की बजाय हिन्दीभाषी राज्य में क्यों नहीं फलफूल सकती है?
टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार ने नब्बे के दशक की शुरुआत में फिल्म इंस्ट्रडी को नोएडा लाने की मुहिम शुरू की थी, लेकिन उनकी हत्या के साथ ही यह ठंडे बस्ते में चला गया। नोएडा फिल्म सिटी इसी परिकल्पना की नींव थी, जो राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में कभी परवान नहीं चढ़ पाई।
अब योगी ने राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखाई है तो संभव है कि गुलशन कुमार का अधूरा सपना आने वाले वर्षों में पूरा हो जाये, और उत्तर भारतीय लोगों को अपने ही इलाके में काम करने का मौका मिले।
बेहतरीन ढांचागत सुविधाएं, अपनी फिल्म नीति एवं इनडोर शूटिंग की खत्म होती जरूरतों के बीच उत्तर प्रदेश आउटडोर शूटिंग के लिये एक लोकप्रिय डेस्टिनेशन बन चुका है। फिल्म इंडस्ट्री को कैसे संचालित किया जाता है, इसे भारत के लोग सीख चुके हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें अपने आसपास फिल्म इंडस्ट्री और तमाम सुविधायें मिल जाये तो यह ना केवल हिन्दीभाषियों के लिये बल्कि उत्तर प्रदेश की आर्थिक सेहत के लिये भी श्रेयस्कर होगा।
1000 एकड़ में विकसित होने वाली फिल्म सिटी के पहले चरण (योजना) में 860 एकड़ में फिल्म फैसिलिटी, 40 एकड़ में फिल्म इंस्टीट्यूट, 60 एकड़ में एम्यूजमेंट पार्क, 15 एकड़ में हास्पिटिलेटी, 23 एकड़ में रिटेल तथा 4 एकड़ में कामर्शिल लैंड विकसित करना होगा। चयनित कंपनी को वर्ष 2024 तक पहले फेज में 321 एकड़, वर्ष 2027 तक दूसरे फेज में 298 एकड़ तथा 2029 तक तीसरे फेज में 382 एकड़ क्षेत्र को विकसित करना होगा।
जबकि दूसरे चरण में 740 एकड़ में फिल्म फैसिलिटी, 40 एकड़ में फिल्म इंस्टीट्यूट, 120 एकड़ में एम्यूजमेंट पार्क, 21.75 एकड़ में हास्पिटिलेटी, 34.25 में एकड़ रिटेल, 40 एकड़ में आवासीय परिसर तथा 4 एकड़ कामर्शिल लैंड विकसित करना होगा। कंपनी को वर्ष 2024 तक पहले फेज में 376 एकड़, वर्ष 2027 तक दूसरे फेज में 298 एकड़ तथा 2029 तक तीसरे फेज में 326 एकड़ क्षेत्र को विकसित करना होगा।
पहली योजना के अनुसार फिल्म सिटी को फिल्म एंड मीडिया इंडस्ट्री के तौर विकसित किया जायेगा, जिसमें 5000 से 5500 करोड़ रुपये तक निवेश का अनुमान है। दूसरी योजना के अनुसार फिल्म सिटी को इंटरटेनमेंट सिटी के रूप में विकसित किया जायेगा, जिसकी अनुमानित लागत 5500 से 6000 करोड़ के बीच आंकी गई है। साभार वन इंडिया।
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फाइल फोटो |
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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