ये हैं यूपी के बाहुबली जिनसे आम लोग तो क्या पुलिस भी कांपती थी, ये हैं प्रमुख नाम

ये हैं यूपी के बाहुबली जिनसे आम लोग तो क्या पुलिस भी कांपती थी, ये हैं प्रमुख नाम

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में ऐसे बाहुबलियों का जोर रहा है जिनकी सत्ता से भी काफी करीबी रही है। यह कुख्यात अपराधी चुनाव जीतकर देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं तक पहुंच चुके हैं।

हत्या, अपहरण, लूटपाट, रंगदारी मांगने से लेकर गैंगवार तक इन अपराधियों के जुर्मों की लिस्ट बहुत लंबी है।

प्रयागराज में बीते शुक्रवार को हुए विधायक राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल की हत्या के मामले में दो बड़े बाहुबलियों का नाम आने से यूपी के कुख्यात गुंडों की चर्चा तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश के उन खूंखार अपराधियों के बारे में जिनसे आम लोग तो क्या पुलिस भी कांपती थी....

अतीक अहमद

सबसे पहले बात करते हैं उस बाहुबली नेता की जिसका हाथ उमेश पाल हत्याकांड में सामने आ रहा है। माना जा रहा है कि अहमदाबाद की जेल में बंद अतीक के इशारों पर ही उमेश पाल की हत्या की साजिश रची गई। जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह अतीक अहमद उत्तर प्रदेश की फूलपुर सीट से सांसद रह चुका है। इस पर हत्या की कोशिश, अपहरण और हत्या के लगभग 44 मामले दर्ज हैं। अतीक यूपी के श्वास्ती का रहने वाला है और पढ़ाई लिखाई में कमजोर था। यही वजह रही कि वह हाई स्कूल भी पास नहीं कर सका।

पढ़ाई में मन नहीं लगा तो जुर्म की दुनिया में कदम रखा और पूर्वांचल व प्रयागराज में ठेकेदारी, खनन और उगाही जैसे अपराध का सरगना बन गया। 17 साल की उम्र में अतीक अहमद के खिलाफ साल 1979 में पहला मामला हत्या का दर्ज हुआ था और यहां से शुरुआत हुई एक लड़के के बाहुबली बनने की।

अतीक अहमद के खिलाफ यूपी के लखनऊ, कौशांबी, चित्रकूट, प्रयागराज के अलावा बिहार में भी हत्या, अपहरण, जबरन वसूली आदि के मामले दर्ज हैं। अतीक के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले प्रयागराज में ही दर्ज हुए हैं।

मुख्तार अंसारी

अब बात करते हैं कुख्यात अपराधियों की लिस्ट में शुमार सबसे बड़े नाम की जो पिछले 17 सालों से जेल में बंद है फिर भी वहां से वह तमाम बड़े अपराधों को अंजाम देता रहा। यही नहीं मुख्तार अंसारी जेल से ही चुनाव लड़कर जीतता भी रहा और अपने गैंग को भी चलाता रहा। यह नाम है बाहुबली मुख्तार अंसारी का जो इस वक्त बांदा जेल में बंद है।

मुख्तार अंसारी पर हत्या, अपहरण, रंगदारी जैसी संगीन धाराओं में लगभग चार दर्जन मुकदमे दर्ज हैं। मुख्तार के गुनाहों की लिस्ट में सबसे ऊपर मऊ में 2005 में हुई हिंसा का आरोप था। 2005 में ही उसने गाजीपुर पुलिस के सामने सरेंडर किया था जिसके बाद से वह जेल में ही बंद है। जेल से ही मुख्तार ने भाजपा नेता कृष्णानंद राय और उनके छह साथियों की भी हत्या कराई थी।

मुख्तार सबसे पहले गाजीपुर, फिर मथुरा, आगरा और फिर बांदा जेल में बंद रहा। कुछ समय के लिए वह पंजाब की जेल में बंद था लेकिन योगी सरकार उसे यूपी लाई और अब वह बांदा जेल में है। सरकार ने बीते साल उसकी और उसके साथियों की करोड़ों की संपत्ति पर बुलडोजर चलवाया व कुर्की भी हुई। मुख्तार का नाम भी उमेश पाल हत्याकांड में सामने आ रहा है।

बदन सिंह बद्दो

बेरापुर टीपी नगर मेरठ निवासी बदन सिंह बद्दो के पिता चरण सिंह 1970 के दशक में जालंधर छोड़कर यूपी के मेरठ में रहने आ गए थे। बद्दो के पिता ने परिवार का जीवनयापन के लिए ट्रक ड्राइवर का काम शुरू किया था। फिर धीरे-धीरे वह खुद एक ट्रांसपोर्टर बन गए थे। वहीं सात भाइयों में सबसे छोटे बदन सिंह बद्दो ने भी ट्रांसपोर्ट के कारोबार में कदम रखा। इसी दौरान उसके संबंध इलाके के बदमाशों से हो गए। इसके बाद उसने शराब के कारोबार में भी हाथ आजमाया। बताया जाता है कि उसने 1988 में अपराध की दुनिया में कदम रखा।

अब तक कर चुका इतनी वारदात
कुख्यात बदन सिंब बद्दो ने 1996 में एक वकील की हत्या की। इसके बाद साल 2011 में उसने मेरठ जिला पंचायत के सदस्य संजय गुर्जर का कत्ल कर दिया। वहीं साल 2012 में उसने एक केबल नेटवर्क के संचालक पवित्र मैत्रे को भी मौत के घाट उतार दिया। कुख्यात बद्दो के खिलाफ यूपी समेत कई राज्यों में लूट, डकैती और हत्या के मामले दर्ज हैं। यूपी पुलिस ने उस पर एक लाख का इनाम घोषित किया तो दिल्ली पुलिस ने भी 50 हजार का इनाम रख दिया। बदन बद्दो के खिलाफ अब ढाई लाख का इनाम घोषित है और पुलिस उसकी तलाश में जुटी हुई है।

बहुत बड़े हैं बद्दो के शौक
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो का रहन सहन देखकर कोई भी उसके शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है। उसकी शानो-शौकत भरी जिंदगी देखकर कोई यकीन नहीं करेगा कि वो एक अपराधी है। महंगी विदेशी बंदूकें, विदेशी नस्ल के कुत्ते, बुलेटप्रूफ कारों का जत्था, सीसीटीवी समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र, किसी महल जैसा आलीशान घर, लुई विटॉन जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है। उसका लाइफ स्टाइल देखकर आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं कि वो एक शातिर अपराधी है।

बृजेश सिंह

बनारस के धरहरा गांव के रहने वाले बृजेश सिंह ने सन 1984 में हुई अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए जरायम की दुनिया में कदम रखा। उस समय वह स्कूल अच्छे नंबरों से पास कर बनारस में बीएससी की पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन तभी जमीन के एक विवाद से जुड़ी रंजिश में स्थानीय राजनीति में सक्रिय उनके पिता रवींद्र नाथ सिंह की हत्या कर दी गई।

इसके बाद बृजेश ने घर छोड़ दिया और एक साल के भीतर ही अपने पिता के तथाकथित हत्यारे हरिहर सिंह की हत्या कर दी। इस तरह बृजेश पर पहला मुकदमा 1985 में दर्ज हुआ, लेकिन वह पुलिस की पकड़ से बाहर रहे, 1986 की अप्रैल में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में हुए हत्याकांड में उनका नाम आया।

अपने तीन दशक लंबे आपराधिक जीवन में 30 से ज्यादा संगीन आपराधिक मुकदमों में नामजद बृजेश सिंह पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट), टाडा (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश रचने से लेकर, दंगा-बवाल भड़काने, सरकारी कर्मचारी को इरादतन चोट पहुंचाने, झूठे सरकारी कागजात बनवाने, जबरन वसूली करने और धोखाधड़ी से जमीन हड़पने तक के मुकदमे लग चुके हैं।

धनंजय सिंह

धनंजय सिंह को पूर्वांचल का बाहुबली माना जाता है। उस पर करीब 40 आपराधिक मामले दर्ज हैं। धनंजय सिंह दो बार विधानसभा और एक बार लोकसभा का चुनाव जीत चुका है। धनंजय सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक छात्र नेता के रूप में की थी और वह तब से ही बाहुबली के रूप में चर्चित रहा है। बाहुबली बनने की उसकी हसरत तब पूरी हुई जब उस पर लखनऊ के हसनगंज थाने में हत्या का केस दर्ज हुआ। साथ ही उस पर सरकारी टेंडरों में वसूली से जुड़े आधा दर्जन केस दर्ज हुए।

धनंजय के अपराध की लिस्ट में 1998 तक ही 12 मामले दर्ज हो चुके थे, साथ ही 50 हजार का इनाम भी घोषित था। धनंजय सिंह की निजी जिंदगी भी रोचक रही है। उसने तीन शादियां की हैं। धनंजय की पहली पत्नी ने शादी के नौ महीने बाद ही सुसाइड कर लिया। दूसरी पत्नी से उसका तलाक हो गया। इसके बाद 2017 में उसने तीसरी शादी की।

साल 2002 में 27 साल के धनंजय को रारी (अब मल्हनी) विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक चुना गया था। इसके बाद उसने दोबारा इसी सीट पर जदयू के टिकट से जीत दर्ज की। इसके बाद धनंजय सिंह बसपा में शामिल हो गए। 2009 में बसपा के टिकट पर जौनपुर से सांसद का चुनाव जीता। साभार ए.यू।

फाइल फोटो

रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com

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