जौनपुर । जनपद के बारे में एक स्थानीय कहावत है. कहते हैं यहां की तीन चीज़ें बहुत मशहूर हैं, मूली, मक्का और मक्कारी. लेकिन, जो चौथी कहावत है, उसके बारे में अब कम ही लोग बात करते हैं.
वो कहावत जिस इंसान पर बनी है, उसका नाम था अशोक सिंह शिवापार (जौनपुर का एक कस्बा). उसके लिए कहते थे कि जब से उसने हाथों में हथियार उठाया, तब से एक गोली से एक आदमी का कत्ल करता था. यानी एक इंसान की हत्या के लिए कभी दूसरी गोली नहीं चलानी पड़ी. 1993 का दौर था.
छात्रसंघ की सियासत पूरे उफान पर थी. कॉलेज के दबंग छात्रों के लिए छात्रसंघ के चुनाव राजनीतिक नर्सरी का काम करते थे. मंडल-कमंडल की सियासत दिल्ली से लेकर पूरे उत्तर भारत के हर कोने में अपना विस्तार कर रही थी. पूर्वांचल में बाहुबलियों की पौध को खून से लाल रखने के लिए यूपी के जिस ज़िले का ज़िक्र अक्सर होता है, उसमें जौनपुर का नाम आता है.
यहां कई राजनीतिक बाहुबली और माफिया जन्में, कांड किए, समाज से लेकर सिस्टम तक अपनी हनक जमाई और फिर अपने अपने अंजाम तक पहुंचे. ऐसे ही एक बाहुबली का नाम था अशोक सिंह. शिवापार कस्बे का मूल निवासी होने की वजह से लोग उसे अशोक सिंह शिवापार कहते थे. 1993 में जौनपुर के TD कॉलेज यानी तिलकधारी डिग्री कॉलेज में कुछ ऐसे छात्रों का एडमिशन हुआ, जो आगे चलकर पूर्वांचल समेत यूपी के कई ज़िलों में माफ़िया बनकर खूंखार गिरोह चलाने लगे.
अशोक सिंह शिवापार, ज्ञानेंद्र सिंह उर्फ़ गुड्डू, सतेंद्र सिंह उर्फ़ बबलू और मुकुल सिंह का ग्रुप कॉलेज में दबंगई के साथ रहता था. इन चारों के गुट से कोई भी छात्र टकराने से बचते थे. हालांकि, कुछ ही महीनों की दोस्ती किसी वजह से जल्द ही दुश्मनी में बदल गई. मसला वर्चस्व का शुरू हो गया, जिसमें सबसे पहली हत्या इसी ग्रुप के एक छात्र की हुई. दोस्त की हत्या ने अशोक सिंह को बनाया बाहुबली चार दोस्तों का गुट अब अशोक सिंह शिवापार और ज्ञानेंद्र सिंह उर्फ गुड्डू और सतेंद्र सिंह उर्फ़ बबलू के बीच बंट गया.
दुश्मनी की शुरुआत होते ही अशोक सिंह शिवापार के दोस्त मुकुल सिंह की हत्या कर दी गई. उसे घर में घुसकर सोते समय गोली मारी गई. हत्या का आरोप ज्ञानेंद्र सिंह उर्फ़ गुड्डू और सतेंद्र सिंह उर्फ़ बबलू पर लगा. इस हत्याकांड ने अशोक सिंह शिवापार की की जिंदगी बदल दी.
इसके बाद दोनों गुटों के बीच वर्चस्व की जंग कुछ ही समय में कॉलेज के बाहर ज़िला स्तर पर शुरू हो गई. दोनों गुटों के बीच बाहुबल का दायरा बढ़ता गया और उसमें अब छात्रों की जगह शार्प शूटर्स और दबंगों ने ले ली. अशोक सिंह शिवापार और गुड्डू बबलू के गुटों के बीच धीरे-धीरे कई लोगों की हत्याएं हुईं. खुद को दूसरे गुट से ज़्यादा वर्चस्व वाला बाहुबली साबित करने के लिए दिन-रात दोनों ओर से घात लगाकर हमले होते रहे.
कभी हत्या हो जाती, तो कभी जानलेवा हमले में कोई बच जाता. इस दौर में अशोक सिंह शिवापार ने अपने हाथों से कई लोगों का क़त्ल किया. धीरे धीरे उसका दबदबा जौनपुर, फैजाबाद समेत आसपास के जिलों में भी बढ़ता गया. अशोक सिंह अब एक नहीं बल्कि दो जिलों का बाहुबली बन चुका था.
जौनपुर और फैजाबाद में उसके नाम से वसूली, अपहरण और लोगों को धमकाने का धंधा भी खूब चला. शादी समारोह को अशोक सिंह ने मातम में बदल दिया 2000 तक अशोक सिंह पर फैजाबाद पुलिस ने एक लाख रुपये का इनाम रख दिया था. उसने जौनपुर से ज़्यादा हत्याएं फैजाबाद में की थी. उसका गैंग जौनपुर और फैजाबाद में अपराधों को अंजाम देता था.
साल 2001 में गुड्डू के घर शादी समारोह था. वहां बबलू भी मौजूद था. अशोक सिंह शिवापार को खबर मिली कि जिन लोगों ने उसके दोस्त की हत्या करके उसे बाहुबली बनने के रास्ते पर ला दिया, वो दोनों शादी समारोह में एक साथ शामिल हैं. अशोक सिंह को लगा कि बदला लेने का इससे बेहतर मौका नहीं मिलेगा.
तब तक अशोक बड़ा बाहुबली बन चुका था. इसलिए बदला लेने वो ख़ुद नहीं गया. उसने बबलू और गुड्डू सिंह को खत्म करने के लिए अपने शार्प शूटर्स भेजे. बबलू और गुड्डू को नहीं मालूम था कि कुछ ही देर में मौत से उनका सामना होने वाला है.
अशोक सिंह के शूटर्स पूरी तैयारी के साथ गुड्डू के घर शादी समारोह में पहुंचे. बताते हैं कि उस शादी में अशोक सिंह शिवापार के गुर्गे कार्बाइन और पिस्टल से लैस होकर आए थे. उन्होंने इतनी गोलियां चलाईं कि समारोह में भगदड़ मच गई. गुड्डू सिंह को गोली लगी और मौके पर ही उसकी मौत हो गई. शादी की खुशियां मातम में बदल चुकी थीं.
बबलू को भी कई गोलियां लगीं. लेकिन किस्मत वो समय पर अस्पताल पहुंच गया और किसी तरह बच गया. बीच शहर में एक दबंग के घर शादी समारोह में ये घटना हुई तो पुलिस पर भी सवाल उठे. गोलीकांड के दौरान कुछ पुलिस वाले भी मौजूद थे.
लेकिन, उस दौर में बाहुबल के सामने ख़ाकी वाले अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे. इसलिए, इतने बड़े हत्याकांड के बावजूद अशोक सिंह शिवापार की गिरफ्तारी नहीं हो सकी. इस घटना के बाद भी दोनों गुटों के बीच कई मौक़ों पर ख़ूनी गैंगवार चलती रही. Delhi Kanjhawala Case: 3 महीने, 120 गवाह 800 पन्नों की चार्जशीट में पुलिस ने बयां की वारदात की कहानी हर हत्या के लिए सिर्फ़ एक गोली का इस्तेमाल अशोक सिंह शिवापार ने ज्यादातर हत्याएं फैजाबाद और आसपास के जिलों में की.
अपने ज़िले में सिर्फ़ वर्चस्व के लिए हत्याएंकी. बाक़ी जगहों पर अलग-अलग वजहों से क़त्ल-ए-आम मचाया. बहरहाल, 90 के दशक में फैजाबाद में जहां कहीं भी सिर्फ़ एक गोली से किसी की हत्या होती थी, तो उसका इल्ज़ाम अशोक सिंह शिवापार पर ही आता था. FIR भी उसी के नाम पर होती थी.
ऐसा इसलिए कहा जाता था, क्योंकि माफ़िया अशोक सिंह का निशाना बहुत पक्का था. वो अक्सर आदमी के सामने पहुंचकर उसे गोली मारता था. यहां तक कहा जाता है कि उस दौर में जब भी जौनपुर, फैजाबाद और आसपास के जिलों में कोई अपहरण होता था, तो पुलिस कप्तान अशोक सिंह से ही पूछते थे. अशोक सिंह ने ज़्यादातर अपराध फैजाबाद और सुल्तानपुर किए.
कुछ हत्याएंजौनपुर में भी की. पुलिस कप्तान को धमकी दी- 20 हत्याएं कर दूंगा! अशोक सिंह उन बाहुबलियों में से था, जो अपने दुश्मनों को मारने के बाद अखबार के दफ्तरों में फोन करता था. वो कहता था कि फलां हत्या मैंने की है, इसलिए उसमें मेरा ही नाम आना चाहिए किसी और का नहीं.
इसके अलावा वो जिन जिलों में भी हत्या करता था, वहां के पुलिस कप्तान के दफ्तर में सीधे फोन करके बोलता था कि ये मेरा मामला है. मेरे घरवालों को परेशान मत कीजिए. एक बार 1999 में गुड्डू सिंह और बबलू सिंह के गुट के एक आदमी की हत्या हो गई. उस वक़्त जौनपुर के पुलिस कप्तान ने अशोक सिंह का घर सील कर दिया गया.
इस बात पर वो इतना भड़का कि कप्तान के दफ़्तर में फोन करके एसपी से बात की. कहा कि एक घंटे के अंदर मेरे घर का ताला नहीं खोला गया तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. उस वक़्त BJP की सरकार थी और रामप्रकाश गुप्ता मुख्यमंत्री थे. अशोक सिंह ने पुलिस कप्तान को फोन पर धमकी दी- "अगर उसके घर का ताला नहीं खोला गया तो चौबीस घंटे के अंदर ज़िले के 20 बनियों की हत्या कर देगा.
फिर आप देखिएगा कि क्या करना है. कहते हैं उस फोन के बाद पुलिस वालों ने एक घंटे में अशोक सिंह के घर का ताला खोल दिया. पिकनिक स्पॉट पर अशोक सिंह का एनकाउंटर साल 2001 में गुड्डू सिंह की हत्या के कुछ समय बाद तक अशोक सिंह पुलिस से आंख मिचौली खेलता रहा. तब तक उस पर 2 लाख रुपये का इनाम घोषित हो चुका था.
2002 में उसके एनकाउंटर का जिम्मा STF को दिया गया. फैजाबाद और जौनपुर में सार्वजनिक जगहों पर उसके नाम के पोस्टर लगे थे. पुलिस ने उसे जिंदा या मुर्दा ढूंढने वाले को 2 लाख रुपये का इनाम देने का ऐलान किया था. 2002 में ही एक दिन माफिया अशोक सिंह शिवापार को STF ने लखनऊ के एक पिकनिक स्पॉट पर पकड़ा और एनकाउंटर में उसे मार गिराया.
अशोक सिंह की तरह धनंजय सिंह की भी बबलू सिंह से दुश्मनी हो गई. कहते हैं कई मौक़ों पर धनंजय सिंह ने बबलू पर जानलेवा हमला करवाया, लेकिन वो बच निकला. इसके बाद बबलू सिंह के दो दुश्मन यानी अशोक सिंह और धनंजय एक दूसरे के करीब आ गए. दोनों का एक ही मक़सद था कि सतेंद्र सिंह उर्फ़ बबलू से बदला कैसे लिया जाए. हालांकि, अशोक सिंह तमाम हत्याएं करने के बावजूद जीते जी अपने सबसे पहले दुश्मन बबलू सिंह से बदला नहीं ले सका। साभार टीवी 9.
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सांकेतिक चित्र |
रिपोर्ट: अमित कुमार सिंह
जर्नलिस्ट
a.singhjnp@gmail.com
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