जौनपुर। एएस एक इंफ्लेमेटरी और ऑटोइम्यून बीमारी है। यह मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है। अगर किसी को यह बीमारी है तो उसकी कमर, पेल्विस और नितंबों में दर्द शुरु हो जाता है। वैसे यह बीमारी पूरे शरीर को ही प्रभावित कर सकती है। पूरी दुनिया में इसके मरीजों का प्रतिशत भले ही छोटा नजर आ रहा हो, लेकिन
100 में से लगभग एक वयस्क इस क्रॉनिक स्थिति से ग्रसित हैं।इस बीमारी में हड्डियां आपस में गुंथ जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप रीढ़ की हड्डी सख्त हो जाती हैं। शोध बताता है कि एएस की पहचान होने में आमतौर पर औसतन 7 से 10 साल लग जाते हैं।इस बीमारी के शुरुआती चरण में, मरीज को अक्सर कमर दर्द की शिकायत रहती है। बहुत से लोग इसे सामान्य दर्द मानकर ईलाज नहीं कराते हैं। यही वजह है कि इस बीमारी की पहचान में देरी हो जाती है। मरीज दर्द निवारक गोलियां खाते रहते हैं। उन्हें यह मालूम ही नहीं होता कि वे एएस से ग्रसित हो चुके हैं। यदि आपको एएस होने का पता चलता है तो शुरु में रूमेटोलॉजिस्ट की मदद ली जा सकती है। इसमें एनएसएआईडी (नॉन स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेंटरी दवाएं) शामिल होती हैं। आगे जाकर रोग में सुधार वाली दवाएं या टीएनएफ ब्लॉकर्स जैसी बायोलॉजिक्स दे सकते हैं। इससे बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। उसके बाद हड्डियों के आपस में गुंथ जाने के समय को आगे बढ़ाया जा सकता है।एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस एक पुरानी और शरीर में कमजोरी लाने वाली बीमारी है। अलग-अलग कारणों से मरीजों को इसके बेहतर इलाज के विकल्प नहीं मिल पाते। बायोलॉजिक थेरेपी अपनाकर हम शरीर की संरचनात्मक प्रक्रिया में नुकसान को कम से कम कर सकते हैं। कई मरीज रीढ़ की हड्डी, घुटनों और जोड़ों में दर्द के इलाज के लिए अन्य तरीके अपनाने लगते हैं, जिससे लंबी अवधि बीतने के बाद भी मरीजों को रोग में कोई आराम नहीं पहुंचता। मरीजों में एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट्स का डर और गैर-पारंपरिक दवाओं की शाखा जैसे होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक और यूनानी जैसी चिकित्सा विज्ञान की शाखाओं पर विश्वास अब भी बना है। वैकल्पिक दवाएं लेने से रीढ़ की हड्डी के बीच कोई दूसरी हड्डी पनपने का खतरा बना रहता है। इसके चलते वह हड्डी पूरी तरह सख्त हो जाती है और मरीज के व्हील चेयर पर आने का खतरा रहता है।
एएस में सुबह के समय कमर, पेल्विस तथा नितंबों का गंभीर रूप से सख्त हो जाना इसके आम लक्षणों में से एक हैं।इसे उपयुक्त व्यायाम के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है।इसी तरह, नियमित व्यायाम करने की दिनचर्या से इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है।पोश्चर को उचित रूप में रखा जा सकता है।अधिक कड़कपन की वजह से व्यायाम करने में मुश्किलें पेश आ रही हैं तो मरीज को यह सलाह दी जाती है कि वे कुछ वॉर्म अप एक्सरसाइज से शुरुआत कर सकते हैं।सुबह के समय ज्यादा दर्द है तो दोपहर के समय व्यायाम कर सकते हैं।साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि अपने वर्क डेस्क या सीट पर झुककर ना बैठें, इससे भी हड्डी में कड़कपन हो सकता है।पोश्चर बिगड़ने की संभावना भी बनी रहती है।
सोने के दौरान आप अपने पोश्चर को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर सकते हैं, इसलिए पीठ के बल सख्त गद्दे पर सोना शुरू कर दें।आपके घुटनों या सिर के नीचे कोई तकिया न हो। चूंकि, इस बीमारी से ग्रसित लोगों में रात के समय दर्द ज्यादा देखा गया है, इसलिए सोने के दौरान असहजता कम से कम हो, अच्छे गद्दों का इस्तेमाल करना बेहतर रहता है।एएस में रात के दूसरे पहर में बहुत तेज दर्द होता है।लंबे समय तक लेटे रहने से भी पीड़ादाई सूजन और कड़कपन हो जाता है।आपको दवाओं के लिये अपने रूमेटोलॉजिस्ट से बात करने की जरूरत है ताकि आपको राहत मिल सके और रात में अच्छी नींद आये।
चिकित्सकों ने इस बात पर जोर दिया है कि गुनगुने पानी में नहाने से एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस के दर्द और कड़कपन में काफी राहत मिलती है।गुनगुने पानी से स्नान के बाद स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज करना दर्द और कड़कपन को दूर करने के लिये अच्छा होता है।दर्द से राहत पाने का अन्य प्राकृतिक तरीका है दर्द वाले स्थान और शरीर के हिस्सों पर हॉट और कोल्ड सिकाई करें। चिकित्सकों के मुताबिक, धूम्रपान करने वाले खासतौर से पुरुषों को एएस की वजह से रीढ़ के क्षतिग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है।धू्म्रपान का सेवन बंद करने से न केवल आगे एएस की वजह से होने वाली क्षति को रोकने में मदद मिलती है, बल्कि इससे आपकी संपूर्ण सेहत में सुधार भी होता है।
मसाज करवाने से आपको आराम महसूस होगा और आपको व्यायाम के लिये तैयार करने में मदद करेगा।इसके साथ ही एक्यूपंचर थैरेपी से आपको शरीर के दर्द से राहत दिलाने वाले हॉर्मोन्स सक्रिय करने में भी मदद मिलती है। हालांकि, इस मसाज थैरेपी को करवाने से पहले फिजियोथैरेपिस्ट से सलाह लेना जरूरी है, जिनके पास एएस का प्रबंधन करने की खास ट्रेनिंग हो, वहीं पर थैरेपी कराई जाए।
डाक्टर रॉबिन सिंह, फाइल फोटो |
रिपोर्ट:अमित कुमार सिंह
एडिटर इन चीफ(परमार टाईम्स)
parmartimes@gmail.com
एक टिप्पणी भेजें